What is the ancient Maha Mandir of Jodhpur built in the 18th century जोधपुर में है योग का महामंदिर

What is the ancient Maha Mandir of Jodhpur built in the 18th century जोधपुर में है योग का महामंदिर

Rao Jodha history and travel

54 года назад

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18 वी शताब्दी में बने जोधपुर प्राचीन महामंदिर क्या है इतिहास
What is the ancient Maha Mandir of Jodhpur built in the 18th century

Mahamandir Temple of Yoga is in Jodhpur

standing on 100 pillars
100 खन्भो पर खड़ा है।

Maharaja Mansingh of Jodhpur had built the Mahamandir in 1805 by spending 10 lakh rupees for his guru Ayas Devnath. At that time an entire city was established in the area. The original temple in the Mahamandir is of Jalandharnath. The temple has eighty-four pillars and the sanctum sanctorum has 16 pillars. The sanctum sanctorum of the temple has pictures of 84 yogasanas and Nath Yogis. The temple has a grand shikhara and many smaller shikharas on the roof. There are also many historically important inscriptions in the temple complex. The whole area is still known by the name of Mahamandir.

In 1805, along with the construction of the Mahamandir, two beautifully carved palaces were also built. One of these palaces was reserved for Nathji himself and the other for the souls of his great ancestors. A grand balcony was built on the roof of the palaces from where Ayas Devnath used to give darshan to his disciple Maharaja Mansingh every morning. In the crematorium located near the palaces, there are umbrellas of the ancestors of Ayas Devnath. Maharaja Mansingh got Mansagar pond, ridge canal and Jhalre constructed near the Mahamandir, on which 40 lakh rupees were then spent.


जोधपुर के महाराजा मानसिंह ने अपने गुरु आयस देवनाथ के लिए 10 लाख रुपए खर्च कर सन 1805 में महामंदिर का निर्माण करवाया था । उस जमाने में क्षेत्र में एक पूरा शहर बसाया गया था । महामंदिर में जो मूल मंदिर है वो जलन्धरनाथ का है । मंदिर में चौरासी स्तंभ और गर्भ गृह में 16 खंबे हैं । मंदिर के गर्भगृह में 84 योगासन और नाथ योगियों के चित्र हैं । मंदिर का भव्य शिखर और छत पर भी कई छोटे शिखर हैं । मंदिर परिसर में कई ऐतिहासिक महत्वपूर्ण शिलालेख भी है । पूरा क्षेत्र आज भी महामंदिर के नाम से ही जाना जाता है ।
सन 1805 में महामंदिर निर्माण के साथ दो सुंदर नक्काशीदार महल भी बनवाए थे । इन महलों में एक स्वयं नाथजी के लिए और दूसरा महल उनके महान पूर्वजों की आत्माओं के लिए आरक्षित था । महलों की छत पर एक भव्य छज्जा बनाया गया जहां से आयस देवनाथ नित्य सुबह अपने शिष्य महाराजा मानसिंह को दर्शन दिया करते थे । महलों के पास ही स्थित श्मशान में आयस देवनाथ के पूर्वजों की छतरियां बनी हुई हैं । महाराजा मानसिंह ने महामंदिर के पास मानसागर तालाब , मेढ़ नहर व झालरे का निर्माण करवाया जिस पर तब 40 लाख रुपए खर्च हुए थे ।








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18 वी शताब्दी में बने जोधपुर प्राचीन महा मंदिर क्या है इतिहास

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